पांगी घाटी के किलाड़ चौकी में मनाया स्वांग त्यौहार, देखिए तस्वीरें- लम्बी दाढ़ी, मुंह पर मुखीटा पहने, सिर पर लम्बी-लम्बी जटाएं
पांगी: पांगी घाटी के किलाड़ में आज जुकारू उत्सव का समापन किया जाता है। किलाड़ मुख्यालय से कुछ दूरी पर चौकी बाजार में आज नाग देवता के कारदार की स्वांग बनाया जाता है। लम्बी दाढ़ी, मुंह पर मुखीटा पहने, सिर पर लम्बी-लम्बी जटाएं, हाथ में. कटार लिए, स्वांग को मेले में लाया जाता है। स्वांग के साथ उसकी वृद्ध माता, गद्दी-गर्दन के वेश में पुरुष तब मेले में पहुंचते हैं। इन्हें देखने लोगों का हजूम उमड़ जाता है। सभी लोग स्वांग के गले मिलना चाहते हैं। परम्परा के अनुसार यदि कोई दु:खी व्यक्ति स्वांग के गले मिलता है तो उसके दु:ख समाप्त हो जाते हैं। दिनभर नृत्य करने के बाद स्वांग को वापिस उसके घर पहुंचाया जाता है।
यह एक नाटकीय प्रक्रम है। आज के दिन किलाई चाड़ी में जकारू उत्सव के सम्पन्न होते है. नाग देवता के कारदार को स्वांग बनाया जाता है। लम्बी दाढ़ी, मुंह पर मुखौटा पहने, सिर पर लम्बी-लम्बी जटाएं, हाथ में कटार लिए, स्वांग को मेले में लाया जाता है। स्वांग के साथ उसकी वृद्ध माता, गद्दी-गद्दन के वेश में पुरुष जब मेले में पहुंचते हैं तो इन्हें देखने लोगों का हजूम उमड़ जाता है। सभी लोग स्वांग के गले मिलना चाहते हैं। परम्परा के अनुसार यदि कोई दु:खी व्यक्ति स्वांग के गले मिलता है तो उसके दु:ख समाप्त हो जाते हैं । दिनभर नृत्य करने के बाद स्वांग को वापिस उसके घर पहुंचाया जाता है। यह एक नाटकीय प्रक्रम है। आज के दिन किलाड़ चाड़ी में जुकारू उत्सव का विषेश मानते है
पांगी घाटी के किलाड़ के कुफा, कवास आदि छोटे-छोटे गांवों में भी उयाण मनाए जाते हैं, किन्तु किलाड़ पंचायत में सर्वप्रथम ‘नागे उयाण’ मनाई जाती है। प्रात: काल उठकर लोग मेले के लिए तैयार होते हैं। नाग देवता के समस्त कारदार मंदिर में पहुंचकर पूजा अर्जना करते हैं। मंदिर से देव-रथ चौकी नामक स्थान पर लाया जाता है और मेले का आयोजन किया जाता है मेले का मुख्य आकर्षण शैण नृत्य होता है।
अगले दिन ‘राजेयाण’ होती है।
इस मेले को चम्बा नरेश के प्रति श्रद्धा के उपलक्ष्य में मनाया जाता है। कुछ वर्ष पूर्व वन विभाग वन विभाग का अधिकारी राजा का प्रतिनिधित्व करता था किन्तु सम्प्रति यह परम्परा समाप्त हो चुकी है। तीसरे दिन ‘टजेयाण’ मनाई जाती है। ‘टज’ शब्द प्रजा के लिए प्रयुक्त किया जाता है। यह मेला प्रजा की मंगल कामना व समृद्धि का प्रतीक है। चौथे दिन ‘भरास्थि’ मेला होता है । लोगों का कथन है कि यह मेला माता भराड़ी को समर्पित है। इस दिन मेले का मुख्य आकर्षण स्वांग होता है।
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