जानिए, हिमाचल प्रदेश में कैसे विलुप्त होते जा रहे घराट
मंडी। किसी समय आटा पीसने का एकमात्र साधन घराट थे, लेकिन वर्तमान यह विलुप्त होते नजर आ रहे हैं। अब इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते जाते हैं। इनके विलुप्त होने का कारण यह है कि अब इन्हें चलाने में संचालकों को अनेकों परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। समय के अभाव में लोग घराटों को पूरी तरह से भूलते जा रहे हैं और अब तो इक्का दूक्का ही यह चलते हैं। बुजुर्गों की मानें तो खड्डों व कूहलों के पानी से चलने वाले घराट पौष्टिक आटा तैयार कर लोगों को मुहैया करवाते थे। लोगों की कतारें भी घराटों के बाहर देखने को मिलती थी। घराट बिना बिजली से चलते हैं और इनमें तैयार होने वाला आटा स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक होता है। अब इनका स्थान आटे की चक्कियों ने ले लिया है, जो बिजली से चलती हैं और बहुत कम समय में आटा पिस जाता है। उधर, सामाजिक कार्यकर्ता सुनील शर्मा ने कहा कि अब जिला मंडी के सरकाघाट व धर्मपुर क्षेत्र में घराट संचालक नाममात्र ही हैं, जो हैं भी वह भी कभी-कभार ही चलते हैं। सरकार यदि प्रोत्साहन दे तो घराटों को चलाया जा सकता है। इससे लोगों को पौस्टिक आटा मिलेगा।
इस तरह से चलते थे घराट
किसी खड्ड या नाले के किनारे कूहल के पानी की ग्रेविटी से घराट चलते हैं। यह आम तौर पर डेढ़ मंजिला घर की तरह होते हैं। ऊपर की मंजिल में बड़ी चट्टानों से काटकर बनाए पहिए लकड़ी या लोहे की फिरकियों पर पानी के बेग से घूमते हैं और चक्कियों में आटा पिसता है।
क्या कहते हैं घराट संचालक
घराट के संचालक अशोक कुमार ने बताया कि सरकाघाट के आसपास में पहले काफी संख्या में घराट होते थे, लेकिन वर्तमान में दो-तीन ही नजर आते हैं। पहले घराट में इतना अनाज इक्ट्ठा हो जाता था कि ग्रामीणों को आठ-दस दिन इंतजार करना पड़ता था। अब चक्की होने से इक्का-दुक्का लोग ही घराट में आते हैं। उन्होंने बताया कि अब कूहलें टूट जाने, पानी की कमी और लोगों के पास समय के आभाव में यह कार्य पूरी तरह से बंद हो गया है। उन्होंने कहा कि अगर सरकार घराटों की मरम्मत के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करे तो यह काम कुछ हद तक शुरू हो सकता है।
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